Monday, September 11, 2017

शिकार

 
     -: शिकार :-

"शिकार जानवर का बंद है
  तो क्या शिकार
  इंसान ही इंसान का करेगा।"
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आदि मानव अपनी भूख मिटाने के लिऐ जानवर का शिकार करता था । जानवर को मार कर पहले कच्चा खाता था फिर शायद कच्चे से बोर हो गया तो पका कर खाने लगा फिर उसके खाली दिमाग की उपज यह थी कि वह फल-फूल खाने लगा और अब अन्न उगाकर अनाज खाने लगा; इसी तरह बदलाव होता रहा और आदि मानव से मानव बना।
मानव कहे तो शिक्षित सभ्य ही होता है । इन बदलावों के साथ साथ मानव की भूख बदली जैसा कि आप सब जानते ही है कि समाज में मानव दो तरीके के निवास करते है ; एक आप जैसे सभ्य और दूसरा असभ्य अनैतिक वहसी किस्म के।
आप को अनाज से मिटने वाली भूख लगती है जबकि दूसरे को इंसान से मिटने वाली भूख लगती है। दूसरे तरह का मानव वहसीपन की हर सरहद पार करके इंसान ( स्त्री ) का शिकार करता है उसे नोंचता है काटता है रूह तलक को जख्मी करता है तब जाकर उसकी भूख मिटती है।

आज हर रोज कितने ही बलात्कार होते है कितनी ही हत्यायें होती है सब सिर्फ एक हवस की भूख के लिऐ होती है।ऐसी भूख प्यास स्वयं खत्म नही होगी और ना ही सजा सुना देने से खत्म होगी ।
ये वो भूख है जो मष्तिस्क में उपजी वहसी सोच के साथ जन्म लेती है ; इसको मारने के लिऐ सिर्फ सोच का बदलना जरूरी है।
तो आप अगर ऐसे किसी मानव से मिलते है तो उसकी सोच को "वाह - वाह" ना कहकर बदल पायें तो शायद ये दो तरह के मानव एक ही हो जायें ; अस्मत के लुटने का सिलसिला शायद ठहर जायें ।

© #देवेश_कुमार

#छायाचित्र_इंटरनेट_से

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