-: आखिरी मुलाकात - एक इश्किया कविता :-
याद है तुम्हे
वो अपनी आखिरी मुलाकात
वही मुलाकात
जो दोनों के बिछड़ने के ठीक पहले हुई थी
कितनी ही कि थी आपस मे हमने बात
फिर भी अधूरी रह गई थी
अपनी अनगिनत बात
सच कहो याद है ना तुम्हे
अपनी वो आखिरी मुलाकात
वादा किया था दोनों ने
देखेंगे मध्यरात्री का चाँद हर रात
देखकर चाँद को इक दूजे को
याद करेंगे हर रात
सच मुच याद है ना तुम्हे
अपनी वो आखिरी मुलाकात
मैंने कहा था कि कुछ भी हो
कितनी भी दूर रहे हम
लेकिन रहूँगा हमेशा तुम्हारे साथ
तुम शायद भूल भी गई हो तो
कोई बात नही
मेरे बाद भी याद रखेगी
मेरी हर बात ये कायनात ।
©देवेश कुमार
छायाचित्र :- इंटरनेट से
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