Tuesday, May 1, 2018

बलात्कार कि खोज?




कोई बतायेगा कि बलात्कार की खोज किसने कि??
बहुत सोचा परन्तु कोई उचित जवाब नही मिला। पुरातन काल में कुछ तुच्छ ॠषि-मुनियों ने ऐसा किया फिर राजा-महाराजाओं ने ऐसा किया उनके बाद सेठ-साहूकार,काले नकाब वाले घोडों पर आने वाले डाकू उनके बाद आम आदमी और अब हाल ये हो गया है कि नारी अब स्वयं अपने परिवार से भय खाती है ।
समय जैसे-जैसे बदल रहा है वैसे-वैसे बलात्कारियों कि नजदीकियाँ नारी के साये के साथ बनती जा रही हैं । स्वयं के साये से कोई दूर हो तो वो कैसे हो? ये सवाल मेरे मन को कचोट रहा है ।
कोई सुझाव हो तो सुझायें ।
#CopyRight_Devesh Kumar
Pic:-google

Monday, September 11, 2017

शिकार

 
     -: शिकार :-

"शिकार जानवर का बंद है
  तो क्या शिकार
  इंसान ही इंसान का करेगा।"
  :-
आदि मानव अपनी भूख मिटाने के लिऐ जानवर का शिकार करता था । जानवर को मार कर पहले कच्चा खाता था फिर शायद कच्चे से बोर हो गया तो पका कर खाने लगा फिर उसके खाली दिमाग की उपज यह थी कि वह फल-फूल खाने लगा और अब अन्न उगाकर अनाज खाने लगा; इसी तरह बदलाव होता रहा और आदि मानव से मानव बना।
मानव कहे तो शिक्षित सभ्य ही होता है । इन बदलावों के साथ साथ मानव की भूख बदली जैसा कि आप सब जानते ही है कि समाज में मानव दो तरीके के निवास करते है ; एक आप जैसे सभ्य और दूसरा असभ्य अनैतिक वहसी किस्म के।
आप को अनाज से मिटने वाली भूख लगती है जबकि दूसरे को इंसान से मिटने वाली भूख लगती है। दूसरे तरह का मानव वहसीपन की हर सरहद पार करके इंसान ( स्त्री ) का शिकार करता है उसे नोंचता है काटता है रूह तलक को जख्मी करता है तब जाकर उसकी भूख मिटती है।

आज हर रोज कितने ही बलात्कार होते है कितनी ही हत्यायें होती है सब सिर्फ एक हवस की भूख के लिऐ होती है।ऐसी भूख प्यास स्वयं खत्म नही होगी और ना ही सजा सुना देने से खत्म होगी ।
ये वो भूख है जो मष्तिस्क में उपजी वहसी सोच के साथ जन्म लेती है ; इसको मारने के लिऐ सिर्फ सोच का बदलना जरूरी है।
तो आप अगर ऐसे किसी मानव से मिलते है तो उसकी सोच को "वाह - वाह" ना कहकर बदल पायें तो शायद ये दो तरह के मानव एक ही हो जायें ; अस्मत के लुटने का सिलसिला शायद ठहर जायें ।

© #देवेश_कुमार

#छायाचित्र_इंटरनेट_से

Wednesday, August 23, 2017

मेरा इश्क :- इश्किया फितूर की कविता

मेरा इश्क :- इश्किया फितूर की कविता
मैं मेरे इश्क से जुदा तो नही
हाँ माना कि उसकी दृष्टि से दूर हूँ
पर हाँ उससे दूर नही ।
मैं मेरे इश्क से जुदा तो नही
हाँ माना कि उससे मिलता नही
पर हाँ उसे बताये कोई कि
ड़ूबा रहता हूँ उसमे
मैं मेरे इश्क से जुदा तो नही
हाँ माना कि वो मेरा नही
पर हाँ उसे बताये कोई कि
मेरा सच्चा इश्क है वो ।
©देवेश कुमार
छायाचित्र :- इंटरनेट से।

Monday, August 21, 2017

Aakhiri Mulakat - आखिरी मुलाकात

     
 -: आखिरी मुलाकात - एक इश्किया कविता :-


याद है तुम्हे
वो अपनी आखिरी मुलाकात
वही मुलाकात
जो दोनों के बिछड़ने के ठीक  पहले हुई थी

कितनी ही कि थी आपस मे हमने बात
फिर भी अधूरी रह गई थी
अपनी अनगिनत बात

सच कहो याद है ना तुम्हे
अपनी वो आखिरी मुलाकात

वादा किया था दोनों ने
देखेंगे मध्यरात्री का चाँद हर रात
देखकर चाँद को इक दूजे को
याद करेंगे हर रात

सच मुच याद है ना तुम्हे
अपनी वो आखिरी मुलाकात

मैंने कहा था कि कुछ भी हो
कितनी भी दूर रहे हम
लेकिन रहूँगा हमेशा तुम्हारे साथ

तुम शायद भूल भी गई हो तो
कोई बात नही
मेरे बाद भी याद रखेगी
मेरी हर बात ये कायनात ।
©देवेश कुमार
छायाचित्र :- इंटरनेट से

बलात्कार कि खोज?

कोई बतायेगा कि बलात्कार की खोज किसने कि?? बहुत सोचा परन्तु कोई उचित जवाब नही मिला। पुरातन काल में कुछ तुच्छ ॠषि-मुनियों ने ऐसा किया ...